लॉकडाउन में पहाड़ और शिक्षा
देश में कोरोना महामारी के चलते 23 मार्च से राष्ट्रीय लॉकडाउन शुरू किया गया था। इस लॉकडाउन के चलते सभी "काम- काजों" को भी बंद करना पड़ा और सारे अपने-अपने घरों में कैद हो गए कुछ लोग थे जिनका काम काज घर से ऑनलाइन के माध्यम से चल रहा था। परंतु अधिकतर लोगों का सारा जीवन अस्त - व्यस्त हो गया था,इसी में एक मुद्दा शिक्षा का भी आता है।
पहाड़ में छात्र और लॉकडाउन
देश में लॉकडाउन भले ही 23 मार्च से शुरू हुआ हो परंतु शिक्षण संस्थानों को 15 मार्च से बंद किया जा चुका था क्योंकि सबसे अधिक प्रभावित होने वाले स्थान या जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा जो किसी ना किसी प्रकार से शिक्षण संस्थानों से जुड़ा होता है, बीमारी से ग्रस्त होने से बचाया जा सके क्यंकि यह एक ऐसा स्थान था जहाँ से देश का हर परिवार किसी ना किसी रूप से जुड़ा होता है। अगर इससे पहले बात करें तो 7 मार्च से अधिकतर संस्थानों में होली की छुट्टियां चल रही थी और संस्था 15 मार्च को खुलना था! इसी बीच सरकार की संस्थानों को बंद करने की घोषणा की गई और देखा जाए तो संस्थान लगभग 7 मार्च से ही बंद हो गए। होली एक राष्ट्रीय उत्सव है भारत का और सभी लोग इसे मनाते हैं तो इसके चलते सब अपने-अपने घरों को जा चुके थे।
पहाड़ों में अच्छे शिक्षण संस्थानों के अभाव के कारण पहाड़ों के अधिकतर छात्र जनसंख्या शिक्षा के लिए शहरों की ओर प्रस्थान करते हैं इसलिए छुट्टियाँ पड़ते ही सभी अपने-अपने घर आ गए। और वह घर आए तो थे त्यौहार के लिए उन्हें क्या पता कि जिन 7 दिनों की छुट्टियों के लिए वे घर आए हैं वह 6 महीने या 1 साल में तब्दील हो जाएंगी। 23 मार्च से लॉकडाउन की शुरुआत के कुछ समय बाद सरकार द्वारा ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था की गई! पहाड़ में ऑनलाइन शिक्षा की शुरुआत होते ही छात्रों के लिए मानव कोविड-19 के अलावा एक और आपदा आ गई हो। आपदा क्यों? क्योंकि ऑनलाइन पढ़ाई सारी इंटरनेट पर निर्भर करती है और यह पहाड़ों में किस तरह बिखरी पड़ी है यह जगजाहिर है और छात्र जो अपना एक थैला लेकर घर छुट्टी मनाने आए थे उनके पास पढ़ाई से संबंधित साधन भी उनके शहर की तरह शहर में ही छूटे हुए थे! इसके लिए यह बिना हथियार के जंग में कूदने के समान थी। साधनों की असमानता और ऊपर से बिजली इंटरनेट की बदहाली का होना। हिंदुस्तान अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक 30 अप्रैल को 40 फीसदी छात्रों के पास ऑनलाइन पढ़ाई पहुंच गई है।
61 फ़ीसदी चमोली में 28 फ़ीसदी चंपावत में छात्र ऑनलाइन शिक्षा से जुड़े हैं। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस NSSO के 2017-18 के सर्वे में यह तथ्य सामने आया कि भारत में केवल 24 फ़ीसदी घर में ही इंटरनेट की सुविधा है ग्रामीण भारत में 66 फ़ीसदी जनता में से केवल 15 फ़ीसदी के घरों में ही इंटरनेट की सुविधा है शहरों में 42 फ़ीसदी तक इंटरनेट की पहुँच है।
जेंडर गैप
इंटरनेट के इस्तेमाल गाँव शहर और अमीर गरीब तक ही नहीं बल्कि इसमें लैंगिक असमानता दिखाई देती है भारत इंटरनेट और मोबाइल के 2019 की रिपोर्ट कहती है कि भारत में 67 फ़ीसदी पुरुषों की तुलना में 33 फ़ीसदी महिलाएं ही इंटरनेट का उपयोग करती हैं और ग्रामीण भारत में यह समानता 72 फ़ीसदी पुरुषों की तुलना में केवल 28 फ़ीसदी तक हो जाता है। इन आंकड़ों के आधार पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि पहाड़ों में इंटरनेट से ऑनलाइन पढ़ाई कैसी चल रही है ऊपर से कुछ समय बाद बरसात का मौसम शुरू हो गया जिससे बिजली का निरंतर होना सिर्फ एक कल्पना मात्र है। और शिक्षा संस्थान अपने अपने पाठ्यक्रम को पूरा करने की होड़ में है।
अगर मैं बात करूं एक छात्र होने के नाते तो मैं और मेरे अधिकतर सहपाठी ऐसी जगह से आते हैं जहाँ इंटरनेट तो दूर बिजली भी निरंतर होना एक कल्पना का विषय है इसके बावजूद भी पहाड़ों में इंटरनेट की खपत अपने चरमोत्कर्ष पर है। माना कि महामारी के अचानक आने से हम ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने के लिए तैयार नहीं थे! परंतु यह एक शिक्षा के नए प्लेटफार्म को ही नहीं भारत को एक नई दिशा में ले जाने की ओर संकेत करता है। क्योंकि जिन माध्यमों से अभी चल भी रही है उसमें व्यवधान भी अधिक हैं और छात्रों को अधिक मात्रा में एकाग्रता की आवश्यकता पड़ती है। काफी समय से अपने घरों में परेशान और अपने दैनिक कार्यक्रम से अलग होने के कारण मनोवैज्ञानिक तौर पर चिंताओं का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि इन असमानता के होने के बाद भी पहाड़ों में जो इंटरनेट की खपत हुई है यह क्या सही दिशा में हो रहा है यह सोचनीय विषय है!
धन्यवाद ......